Exempted Under 80-G, Regd. 6/2006(B-4)
नीरज कुमार, अध्यक्ष
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' स्मृति न्यास
( 35 वर्षों से सांस्कृतिक उत्थान हेतु समर्पित )

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर

(23 सितंबर 1908 - 24 अप्रैल 1974)

आधुनिक हिंदी साहित्य के महान कवि, जिन्होंने अपनी ओजस्वी वाणी से राष्ट्रीय चेतना को जगाया

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का चित्र

जीवन परिचय

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 को बिहार के मुंगेर जिले के सिमरिया गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम बाबू रवि सिंह और माता का नाम मनरूप देवी था। दिनकर जी का बचपन गरीबी में बीता, लेकिन उनकी मां ने उन्हें शिक्षा के लिए प्रेरित किया।

दिनकर जी ने पटना विश्वविद्यालय से बी.ए. की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने अपना करियर एक शिक्षक के रूप में शुरू किया और बाद में सरकारी सेवा में चले गए। वे राज्यसभा के सदस्य भी रहे और भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति का पद भी संभाला।

साहित्यिक योगदान

दिनकर जी की कविता में राष्ट्रीयता, वीरता और मानवीय गुणों का अद्भुत संयोजन मिलता है। उनकी प्रमुख कृतियों में रश्मिरथी, कुरुक्षेत्र, उर्वशी, हुंकार, रेणुका, हिमालय, सामधेनी आदि शामिल हैं। उनकी कविताओं में स्वतंत्रता संग्राम की भावना और सामाजिक न्याय के स्वर मुखरित होते हैं।

प्रमुख कृतियां

रश्मिरथी

1952

महाभारत के कर्ण के जीवन पर आधारित महाकाव्य जो जातिवाद के विरुद्ध एक प्रबल स्वर है।

कुरुक्षेत्र

1946

युद्ध और शांति के द्वंद्व पर आधारित प्रबंध काव्य जो आधुनिक समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करता है।

उर्वशी

1961

प्रेम और सौंदर्य की अभिव्यक्ति करने वाली कृति जिसके लिए दिनकर जी को ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला।

हुंकार

1938

राष्ट्रीय चेतना और क्रांतिकारी भावनाओं से भरपूर काव्य संग्रह।

संस्कृति के चार अध्याय

1956

भारतीय संस्कृति और सभ्यता पर आधारित महत्वपूर्ण गद्य कृति।

अर्धनारीश्वर

1952

नारी के महत्व और समानता पर आधारित निबंध संग्रह।

पुरस्कार और सम्मान

दिनकर जी को अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उन्हें 1959 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1972 में ज्ञानपीठ पुरस्कार और 1959 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। भारत सरकार ने उन्हें 'राष्ट्रकवि' की उपाधि से विभूषित किया।

दिनकर जी का दर्शन

दिनकर जी मानते थे कि साहित्य समाज का दर्पण है और कवि का कर्तव्य है कि वह समाज की कुरीतियों के विरुद्ध आवाज उठाए। उनकी कविताओं में मानवीय गरिमा, स्वतंत्रता और न्याय के स्वर मुखरित होते हैं। वे कहते थे:

"सिंहासन खाली करो कि जनता आती है"

स्मृति न्यास का उद्देश्य

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर स्मृति न्यास का गठन उनकी साहित्यिक विरासत को संजोने और आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने के उद्देश्य से किया गया है। न्यास का मुख्य लक्ष्य हिंदी साहित्य के प्रचार-प्रसार और नई प्रतिभाओं को प्रोत्साहन देना है।